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मई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती

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क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती... ये मुस्कुराना, खिलखिलाना, नज़रों से नज़रें मिलाना, सब कुछ यूँ ही छूट जाती, क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती... ये डर हर पल डराये जाती है, धड़कनों को आग सी जलाये जाती है, ये सब्र कभी दिल को हो नहीं पाता, जब मै ही तू हूँ, फिर क्यूं मुझे सताए जाती है, ये धड़कन, ये सब्र यूँ ही टूट जाती, क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती... ये मुस्कुराना, खिलखिलाना, नज़रों से नज़रें मिलाना, सब कुछ यूँ ही छूट जाती, क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती कुछ पल की नज़र ही काफी होती है, नज़रों को समझाने के लिए, तेरी जुस्तजू, तेरी आरज़ू को यादों में बसाने के लिए, उस आहट को मुस्कराहट को समझता हूँ मैं लेकिन कुछ पल होते ही ऐसे हैं, धड़कनों को जलाने के लिए, ये संजीदगी, ये शर्माहट यूँ ही लूट जाती, क्या होता कहीं तू यूँ रूठ जाती... ये मुस्कुराना, खिलखिलाना, नज़रों से नज़रें मिलाना, सब कुछ यूँ ही छूट जाती, क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती

सुना है कल याद किया था किसी ने मुझे

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सुना है कल याद किया था किसी ने मुझे, ये मोहब्बत है या कुछ और बताना मुश्किल है... हिचकी भी आयी थी एक बार मां से जिक्र भी किया था, मां भी निकली सयानी बोली कम कम ही निवाला डाला कर गले में रोटी अंदर को फंस आयी है पानी से ही चली गयी थी या था कुछ और ये बताना मुश्किल है... सुना है कल याद किया था किसी ने मुझे, ये मोहब्बत है या कुछ और बताना मुश्किल है... एहसास भी हुआ था एक बार मुझे, कुछ है जो कर रही परेशां, किसी ने कहीं याद तो नहीं किया मुझे, पल पल कर दिन गुजरा उस गर्मी का ये उमस थी या कुछ और बताना मुश्किल है सुना है कल याद किया था किसी ने मुझे, ये मोहब्बत है या कुछ और बताना मुश्किल है... चांदनी रात और छत का वो नजारा, ये गलतफहमी थी या हक़ीक़त  लेकिन फिर उमड़ी थी दोबारा किसी ने दिया था पानी  खाना भी खा लिया था  लेकिन पानी की एक घूंट ने  जैसे जान ही ले लिया था  भाभी ने कहा पानी का सरकना तो  किसी के याद करने की निशानी है कौन है वो किसकी ये कहानी है  ये हक़ीक़त थी या कुछ और  बताना मुश्किल है... सुना है कल याद किया था किसी ने मुझे, ये मोहब्बत है

लगता है यूं ही कुछ खोया सा है

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आज देखा ही नहीं निगाह भर के उसे, लगता है यूं ही कुछ खोया सा है आज देखा ही नहीं निगाह भर के उसे... कुछ वक्त का तकाज़ा था तो कुछ आहट भी न आयी उधर से, पलके पलटी थी उधर एक बार याद है, लेकिन कोई चाहत ही न आयी उधर से, ये आसमां, ये मंजर लगता है यूं ही सोया सा है, आज देखा ही नहीं निगाह भर के उसे लगता है यूं ही कुछ खोया सा है... कसूर उसका भी नहीं ये वक्त ही कुछ ऐसा है  मांग लो एक टुकड़ा रोटी का  लगता है जन्नत मांगने जैसा है  कुछ ऐसे ही बदहवास में, कुछ और पाने की तलाश में, वो भी आज यूं ही मशगूल रही, ख्वाहिशों को पाने की आश में, मगर कैसे बताऊं उसे ये मंजर जैसे खंजर  और न जाने क्या क्या बोया सा है  आज देखा ही नहीं निगाह भर के उसे लगता है यूं ही कुछ खोया सा है.. . वैसे अच्छा नहीं है केवल औरों को ही  कसूरवार ठहराना, अपने को ही अच्छा और दूसरे को  दोषी बतलाना, मैं भी तो ऐसे ही मशगूल था कुछ की चाह में, छिन, पल, घंटों बीत गया दिन का पता ही न चला  उस राह में, हो सकता है उसका इशारा भी आया हो, पल पल गुजरें हो मेरी एक नजर को जो मैं चाहता हूं वो नजारा भी आया हो, लेकिन अब य

तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है

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तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है… तेरी नटखट कुछ आदतें टटोलती बहोत है, तू अच्छी…. कभी गुस्सा भी आ जाता है तेरी कही हुई कुछ बातों पर, मैं सोचने को मजबूर हो जाता हूं तेरी सोच की हालातों पर, पर तेरा निखरना, भंवरना और कभी सहरना ही बहोत है, तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है…… हंसना, मचलाना और मुस्कराहट तुझे संवारती हैं, पर तंज की कुछ बातें तेरी निखार को बिगाड़ती हैं, तू जान से भी ज्यादा कभी जान लगा देती है, झाम कोई काम हो तू काम बना देती है, ये नाम तेरे काम की ही झोलती बहोत है, तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है…… तू नादान है नासमझ है ये सोच ही तो सब है, जो चाह कर भी दिल को मेरे झोक देती अब है, कभी चिड़चिड़ापन मेरा भी तुम्ही से होती खत है, तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है…. कभी तर्क-वितर्क की बातें तेरी बूढ़ी अम्मा की याद दिलाती हैं, मैं अचंभित हो जाता हूं जब तू सबसे टकराती हैं, कुछ आदतें, कुछ ताकतें, ये शक्तियां तो बहोत है, तेरी नटखट कुछ आदतें टटोलती बहोत है, तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है…. मैंने परिंदों

मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही

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मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही मैं चाहा था हर वक्त तुझे लेकिन तू चाहत से दूर रही मेरी और तुम्हारी कहानी…… याद है पहली बार तेरे दीदार से ही परितृप था, उमंगें भी बहुत थी मन में, अचल ख्यालों में लिप्त था, तेरा मुस्कुराना, खिलखिलाना और न जाने क्या-क्या तू रही मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही… हर वक़्त तेरे ख्यालों में गोता खाता हूं अब भी, बस मिले थोडी सी आहट खींचा जाता हूं अब भी, बहानों की तलाश में तेरे पास आने की आश में, बेचैन रहता हूं इतना कि मेरी वक्त भी मुझको ढूंढ रही, मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही… तेरी इबादत में भी मेरा ख्याल हो, बस यही ख्वाहिश रहती है कब से, ख्वाब, दुआ सब तेरे दास हों काश मैं मांग लेता रब से, पर तेरी अंजानी ये आंखें मेरी हर एक आहट से दूर रही, मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही… गर होता हूं सामने कुछ आहट तो दिया कर, भले कुछ न बोल कुछ इशारे तो किया कर, ये धड़कने तुझसे कुछ आहट लेती रहें, मेरी अधूरी इन नजरों को कुछ राहत देती रहें, ये मंजर जैसे खंजर तेरे बिन न जुस्तजू रही, मेरी और तुम्हारी कहानी कुछ यूं रही.... हर दिन तेरे दि

दिल की बात: एक ख्वाब -1

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दरिया से होते हुए समंदर में गिरना था, मालूम नहीं था मुझे यहीं आकर मिलना था। दरिया से होते हुए समंदर में गिरना था.... उस आग के झोकों ने कुछ नहीं बिगाड़ा मेरा, फूलों की खुशबू ने कुछ नहीं संवारा मेरा। मैं थपेड़ों में लहकता बहकता चला गया, इस बवंडर को भी आकर यही फिरना था। दरिया से होते हुए समंदर में गिरना था। मंजर भी खूबसूरत था शायद, पेड़ों के पत्ते भी झूम रहे थे, मैं घिरा था उस बवंडर में, हर पल एक नए किस्से बुन रहे थे, मेरी सोच पर एक सोच हावी था, क्या मैं उस बवंडर से निकल पाऊंगा, सपने जो हजारों पंक्तियों में खड़े हैं, क्या उनमें से एक भी पूरा कर पाऊंगा, जब इस सपने की छाती को समंदर को ही चीरना था, क्यों दिखे ये सपने जब यूं ही खिलना था, दरिया से होते हुए समंदर में गिरना था... उन यादों को, उन मर्जों को सुला देना चाहता था, राह के हर एक गम को भुला देना चाहता था, जब इस ठहरे हुए पल में नदीश के जल में, अम्बर के कर में यूँ ही घिरना था, दरिया से होते हुए समंदर में गिरना था... पर खुदा भी कुछ सोच कर ये मेल कर रहा था, अचानक एक आवाज थी "मैं खेल कर रहा था" एक परी

प्रेम ईर्ष्या दिल का

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हां हो रही है जलन मुझे… मैं भोला हूँ, कच्चा हूँ, कुछ झूठा हूँ, कुछ सच्चा हूं, लेकिन कुछ बातें हैं जहां देख नहीं सकता तुझे, हां हो रही है जलन मुझे… ये आँखों-आँखों की जो बातें हैं, बस यहीं हम दोनों की मुलाकातें हैं, तेरा हंसना, मायूस होना सब कुछ मैंने बांटे हैं, बस कुछ तुम समझ पाती तो कुछ पता ही नहीं चलता तुझे, हां हो रही है जलन मुझे… कुछ भी सुनना खिलाफ तुम्हारे गँवारा नहीं दिल को, एक अजीब सी उलझन में फंस के रह जाता हूँ, बातें चाहें छोटी हों या फिर बड़ी सुलझाने में लग जाता हूँ उसमें भी ये उपेक्षा तेरा क्यों न तड़पाये मुझे, हां हो रही है जलन मुझे.... हो भी क्यूं ना ये बातें, जब चाहता हूँ बस मैं और सिर्फ मैं ही तुझसे मुलाकातें, लेकिन ये कुछ नज़रअंदाज़ करना तेरा, झुकाती हैं किसी और ओर तुझे, हो भी क्यूं न ये जलन मुझे… मालूम है तेरा चुपके से देखना मुझे, नजरें मेरी भले कहीं हों हर पल निरेखतीं हैं तुझे, हर एक गतिविधि पर रहता है ख्याल मेरा भले ये बातें मालूम न तुझे, हां हो रही है जलन मुझे…. तेरी हर एक ख्वाहिश को ख्वाब में सजाता हूँ मैं, वो सारी खुशियां तेरी

दिल की बात: एक ख्वाब -2

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यह ख्वाब में एक ख्वाब था मैं उठ खड़ा हुआ था, न परी थी न समंदर बिस्तर पड़ा हुआ था। थी नींद मेरी गहरी देर तक सो चुका था, शायद परी के चक्कर में देर हो चुका था, अब आ चुका था मंजिल बन-ठन के मैं चला था, और फिर किसी की राह में ये मनचला खड़ा था, सब लोग अपने काम में मशगूल हो चुके थे कुछ खोया सा ये मनज़ला एक कोने में पड़ा था। एक आहट दरवाजे की धीरे से थी आयी, पलट के मैंने देखा उसी की झलक पायी। सरसराहट सी निकल के बगल से वो गयी थी, अपनी जगह पहुंच के मशगूल हो गयी थी, उसको भी ये खबर थी ये उसी की चाहते हैं, मेरी धड़कनों के अंदर उसी की आहटे हैं। मुझे भी ये खबर थी उसे भी ये खबर थी, पर अजीज मेरे दिल में एक अजीब सी लहर थी, मैं  चाहता हूँ उसको वह चाहती है मुझको, पर दिल में ये कसक थी कि उसने न क्यूं पहल की। बस वक्त यूँ ही गुजरा एक पहर बीत चुका था, उसकी एक नजर को ये नजर थक चुका था। अब किस्मत भी मेरी एक मोड़ ले रही थी, हो दीदार उसकी आँखों का ये जोर दे रही थी, तभी हवा के झोंके ने थी खिड़कियां खड़काई, टकरा कर उसकी एक नजर मेरी तरफ भी आयी। हवा ने उसकी अधरों को मुस्कान दे दिया था, मुरझाये ह