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कल फिर गुजरा था उस गली से

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कल फिर गुजरा था उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था.. कल फिर गुजरा था उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था... वो वादियाँ वो मस्तियाँ आज भी याद हैं वो हाथों में हाथें डाले खेतों में सरसों की वो फुलझड़ियां नदी का वो किनारा आज भी याद है वो खिलखिलाता चेहरा, मासूमियत था गहरा जिसको यूँ ही छोड़ आया था कल फिर गुजरा था उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था कल फिर..... वो गली जहाँ चलना और मचलना सीखा था, हवाओं के साथ उड़ना और भंवर ना सीखा था क्या मजाल जो कोई छोर ले एक तिनका इन हाथों से, बचपन के उस राह पर वो गरजना सीखा था आज कल तो सब कुछ जैसे भूल सा गया है वो चाक - और मिट्टी से जो पहाड़ा जोड़ आया था कल फिर गुजरा था उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था.. कल फिर..... ये बचपन चीज ही ऐसी है जो ता उम्र के लिए एक मीठी याद बनाती है, चाहें कुछ पानी हो या फिर हवा खुद ही जहाज बनती, तैराती और उड़ाती है ऐसी ही कुछ यादों

काश तू ऐसी होती

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काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... मैं हँसते - हँसते जब यूँ ही मायूस हो जाता हूँ, थका सा - हारा सा जाने कहाँ खो जाता हूँ , तू एक दुआ होती उस वक्त रात के जुगनुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... जब मुश्किलों के थपेड़ों में, मैं डूबा होउ तूफानों के अंधेरों में, जब किसी खास की तलाश हो, किसी के न मिलने की आश हो, काश! ये सब कुछ बेअसर होता जब तू सामने होती, काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती...

हवा का झोंका है ये ज़िन्दगी

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हवा का झोंका है ये ज़िन्दगी, कैसे गुजर जाएगी, खबर भी न पाओगे। ये जो बनाते हो महल ख्वाब के हर वक्त, कैसे टूट जाएगी खबर भी न पाओगे कहते हो वक्त ही नहीं है, थोड़ा सा मन-मस्ती करने के लिए, दुनिया के इस दरिया में, कुछ गोता भरने के लिए, ये वक्त है वक्त कब निकल जायेगा पकड़ भी न पाओगे, ये जो बनाते हो महल ख्वाब के हर वक्त, कैसे टूट जाएगी खबर भी न पाओगे, हवा का झोंका है ये ज़िन्दगी, कैसे गुजर जाएगी, खबर भी न पाओगे। लाख रहो मशगूल थोड़ा वक्त भी निकालो, ज़िन्दगी एक बार मिली है चलो जी लो और कुछ अपनो को भी सम्भालो ये कब्र जो आँखें बिछाए पड़ी हैं कब उठा ले जाएगी खबर भी न पाओगे ये जो बनाते हो महल ख्वाब के हर वक्त, कैसे टूट जाएगी खबर भी न पाओगे, हवा का झोंका है ये ज़िन्दगी, कैसे गुजर जाएगी, खबर भी न पाओगे।