तू अच्छी है सच्ची है लेकिन बोलती बहोत है

तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है…
तेरी नटखट कुछ आदतें
टटोलती बहोत है,
तू अच्छी….

कभी गुस्सा भी आ जाता है
तेरी कही हुई कुछ बातों पर,
मैं सोचने को मजबूर हो जाता हूं
तेरी सोच की हालातों पर,
पर तेरा निखरना, भंवरना
और कभी सहरना ही बहोत है,
तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है……

हंसना, मचलाना और मुस्कराहट
तुझे संवारती हैं,
पर तंज की कुछ बातें तेरी
निखार को बिगाड़ती हैं,
तू जान से भी ज्यादा कभी
जान लगा देती है,
झाम कोई काम हो
तू काम बना देती है,
ये नाम तेरे काम की ही
झोलती बहोत है,
तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है……

तू नादान है नासमझ है
ये सोच ही तो सब है,
जो चाह कर भी दिल को मेरे
झोक देती अब है,
कभी चिड़चिड़ापन मेरा भी
तुम्ही से होती खत है,
तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है….

कभी तर्क-वितर्क की बातें तेरी
बूढ़ी अम्मा की याद दिलाती हैं,
मैं अचंभित हो जाता हूं
जब तू सबसे टकराती हैं,
कुछ आदतें, कुछ ताकतें,
ये शक्तियां तो बहोत है,
तेरी नटखट कुछ आदतें
टटोलती बहोत है,
तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है….

मैंने परिंदों को कटते
और संवरते भी देखा है,
तेरी हाथों की लकीरों में
एक उसकी भी रेखा है,
कुछ छोड़ कर
कुछ चीजों को अपनाना होता है,
एक रश्म है दुनिया की
उसे निभाना होता है
ये रुख्सतें, ये शख्सियत
ये संजीदगी ही बहोत है,
तू अच्छी है सच्ची है
लेकिन बोलती बहोत है.........

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