काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... मैं हँसते - हँसते जब यूँ ही मायूस हो जाता हूँ, थका सा - हारा सा जाने कहाँ खो जाता हूँ , तू एक दुआ होती उस वक्त रात के जुगनुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... जब मुश्किलों के थपेड़ों में, मैं डूबा होउ तूफानों के अंधेरों में, जब किसी खास की तलाश हो, किसी के न मिलने की आश हो, काश! ये सब कुछ बेअसर होता जब तू सामने होती, काश तू ऐसी होती... हंसती, मुस्कुराती, मेरा हर एक गम यु ही मिटाती, इस हरियाली में हवाओं सी खुश्बुओं के जैसी होती, काश तू ऐसी होती... मुख्य स्रोत: https://rkkannoujea.com/blog/poem-4-by-kannoujea/ लेखक: राज किशोर कन्नौजिया (Raj Kishor Kannoujea) ****************
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