कल फिर गुजरा था उस गली से

कल फिर गुजरा था
उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था.. कल फिर गुजरा था
उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था... वो वादियाँ वो मस्तियाँ आज भी याद हैं वो हाथों में हाथें डाले खेतों में सरसों की
वो फुलझड़ियां नदी का वो किनारा आज भी याद है वो खिलखिलाता चेहरा, मासूमियत था गहरा जिसको यूँ ही छोड़ आया था कल फिर गुजरा था
उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था कल फिर..... वो गली जहाँ चलना और
मचलना सीखा था, हवाओं के साथ उड़ना और भंवरना सीखा था क्या मजाल जो कोई छोर ले एक तिनका इन हाथों से, बचपन के उस राह पर वो गरजना सीखा था आज कल तो
सब कुछ जैसे भूल सा गया है वो चाक - और मिट्टी से जो पहाड़ा जोड़ आया था कल फिर गुजरा था
उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था.. कल फिर..... ये बचपन चीज ही ऐसी है जो ता उम्र के लिए एक मीठी याद बनाती है, चाहें कुछ पानी हो या फिर हवा खुद ही जहाज बनती, तैराती और उड़ाती है ऐसी ही कुछ यादों से, उन गलियों और उन बहारों से आज फिर एक रिश्ता जोड़ आया था
कल फिर गुजरा था
उस गली से जहाँ वर्षों पहले कुछ यादें छोड़ आया था. कुछ जुस्तजू, कुछ चाहत सब कुछ जोड़ आया था.. कल फिर.....
राज किशोर कन्नौजिया (Raj Kishor Kannoujea)

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